कोई पूछे गर यह सवाल कि
अधूरी कविता कैसी होती है,
मेरा उत्तर होगा कि
हमारे प्रेम जैसी होती है
बेमिसाल, लाजवाब
जज़्बातों से लबरेज़,
जो कही नहीं जाती
हर्फ़ दर हर्फ़ जी जाती है
दो दिलों की एकाकार
भावनाओं की तरह,
परिणीति के बंधनों से मुक्त
बस एक दूजे के लिए जी जाती है
अधूरी कविता ऐसे भी कही जाती है
वज्रतम पर्वत की तलहटी में,
कौतूहल करती तरंगिनी सी,
अनंत प्रेम की लहरें,
पूर्ण होने की आतुरता से उन्मुक्त,
बस बहती चली जाती है
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