Wednesday, March 7, 2018

बूढ़ा बरगद

बूढ़ा बरगद सिमटता जा रहा है,
अब नई कोपलें नहीं फूटती,
पुरानी टहनियों पर नहीं ठहरते पत्र नए,
मगर आज भी अटल है,
मौसमों की बदलती चाल का तजुर्बा लिए,
आगंतुक को सहारा देने में सक्षम,

और शायद ऐसे ही होते है
एक उम्र के बाद पिता भी
उम्रदराज़, कुछ कमज़ोर,
मगर संबल देने में सर्वदा तैयार
जीवन की हर हताशा को दूर भगाने के लिए,
फिरसे जीतने का भरोसा दिलाने के लिए