मैं तटस्थ भाव से
देखती हूँ परिवर्तन
हिमीगिरि के शिखर पर
पिघलते तुहिन कण
जीवन की यायावरी में
बातों के बदलते मतलब
समझ से परे बेमतलब
शब्दों की बाजीगरी में
इस नीरव सी यायावरी में
स्वयं की निजता विसार
सारी प्रभुता के पार
फैला हुआ द्वन्द अपार
दिग्भ्रमित करती यायावरी में
कोलाहल मन का है
या कोतुहल क्षण भर का
सिमित दायरों में उलझे उत्तर
इस अनंत यायावरी में
कंक्रीट की बस्तियों में
ढूंढ़ते प्रकृति की गरिमा को
दिखते है कुछ सभ्य लोग
सिमटती हुई यायावरी में
देखती हूँ परिवर्तन
हिमीगिरि के शिखर पर
पिघलते तुहिन कण
जीवन की यायावरी में
बातों के बदलते मतलब
समझ से परे बेमतलब
शब्दों की बाजीगरी में
इस नीरव सी यायावरी में
स्वयं की निजता विसार
सारी प्रभुता के पार
फैला हुआ द्वन्द अपार
दिग्भ्रमित करती यायावरी में
कोलाहल मन का है
या कोतुहल क्षण भर का
सिमित दायरों में उलझे उत्तर
इस अनंत यायावरी में
कंक्रीट की बस्तियों में
ढूंढ़ते प्रकृति की गरिमा को
दिखते है कुछ सभ्य लोग
सिमटती हुई यायावरी में