जीवन में कुछ लोग हमें सहारा देते है और कुछ को हमारा सहारा होता है। कोशिश यही होनी चाहिए जो हमारे सहारे बने है उनको कभी भावनात्मक रूप से टूटने पर विवश ना किया जाए।
यह कविता उन चंद अपनों के नाम जिनको कभी अपना माना था, मगर उनके लिए मौकापरस्त होना ही जीवन चलाने का मंत्र था।
मत आना तुम दोहराने
वही गीत अपने पुराने
जब राख का मैं ढेर बनूँ
जब अंतिम विदा इस जग से लूं
तुम्हारे खोखले शब्द
करते है मुझे निशब्द
उन शब्दों से अंतिम बार
वेधने मुझे तुम आना
दुनिया क्या कहेगी,
इस प्रश्न को मिटा दिया है
मैंने अपनी कहानी से,
दुनिया का गणित बिठाने को
तुम मुझे भाज्य ना कर जाना
जिस तरह छला है हर बार
कभी उपहास कभी तिरस्कार
वही लीक कायम रखना इस बार
दो आंसू झूठे देकर मुझको,
अब ऋणि मत कर जाना
अंतिम क्षणों की पीड़ा सा अनुभव,
जीते जी भरपूर मिला है,
जब जान से प्यारों ने,
कुछ सक्षम सहारों ने,
निर्ममता से भरपूर छला है
मोहभंग हो जब जीवन से,
मृत्यु क्या दुखदायी होगी
इस वेदना का अंत करने में
एक वही सखी सहायी होगी