Sunday, April 28, 2019

अधूरी कविता

कोई पूछे गर यह सवाल कि
अधूरी कविता कैसी होती है,
मेरा उत्तर होगा कि
हमारे प्रेम जैसी होती है

बेमिसाल, लाजवाब
जज़्बातों से लबरेज़,
जो कही नहीं जाती
हर्फ़ दर हर्फ़ जी जाती है

दो दिलों की एकाकार
भावनाओं की तरह,
परिणीति के बंधनों से मुक्त
बस एक दूजे के लिए जी जाती है
अधूरी कविता ऐसे भी कही जाती है

वज्रतम पर्वत की तलहटी में,
कौतूहल करती तरंगिनी सी,
अनंत प्रेम की लहरें,
पूर्ण होने की आतुरता से उन्मुक्त,
बस बहती चली जाती है

Tuesday, April 9, 2019

चाँद के साथ टहलने निकलें

चाँद के साथ टहलने निकलें
वो सितारों में अकेला,
मैं हज़ारो में अकेला,
रात के आखिरी पहर तक,
देते है एक दूजे का साथ
चल चाँद मैं तुझे सुनाऊँ
अपने दिल की बात
तू भी कह देना अपने जज़्बात,
कैसे अंधेरे में रोशनी बिखेर,
अनगिनित सितारों के बीच,
जब तू सफर तय करता है
शून्य से पूर्ण होने का
क्या तेरा मन नहीं होता,
कहीं ठहरने का,
सम हो जाने का भाव
चल फिर मिलते है आज रात

Sunday, April 7, 2019

Digital दोस्ती

दोस्त भी मिल जाते है,
फेसबुक वाले like पे,
व्हाट्सअप की स्माइल पे,
ट्विटर की following में,
भारत जबसे Digital india हुआ है,
दोस्ती भी डिजिटल हो चली है,

ऐसे दोस्त
स्कूल की बदमाशियां,
चाय की चुस्कियां,
फुरसत वाली चहलक़दमियाँ,
शायद नहीं बांट पाते,
मगर ख्यालों का ख्याल रखना समते है,
मन के भारी होने पर डांट देते है,
अकेलापन तो वो भी बांट लेते है,
दोस्ती डिजिटल हुई तो क्या,
फिक्र तो दिल से ही होती है

रिश्ते की शुरुआत मायने नहीं रखती,
जज़्बात के मायने मुक्कमल होने चाहिए,
Digital हो या real दोस्ती को,
निभाने की दोतरफी नीयत चाहिए

Saturday, April 6, 2019

प्रेम

Sacrifice is synonymous to love. The one who can sacrifice, can attain nector of love. Portraying same emotion in my words. Hope you like it

जीने को कठिन है,
नियामक संसार के,
पीड़ा में प्रेम की जो पाए सुख,
सर्वस्व वार के,
वही जीत पाए यहाँ ,
जो सब कुछ हार दे,
राम कहलाये महाभाग
सिया संग त्याग के
अस्तित्व की अपूर्णता में
रहे जो स्वयं पूर्ण,
ऐसे स्वछन्द प्रेम में,
जीवन गुजार दे ☺️

Friday, April 5, 2019

रात सरकती जाती है

जैसे जैसे रात सरकती जाती है
याद गहराती जाती है,
पीर गहरे ज़ख्मो की
बेख़ौफ़ कोहराम मचाती है,
मैं चाहती हूं कुछ पल का सुकून
पर
अंधेरे की आढ़ लेकर
कुछ परछाइयां मुझसे मिलने आती है,
मैं बचना चाहती हूं जिन सवालों से,
उन्हीं सवालों के कठघरे में,
बेबाक मुझे बिठाती है
फिर एक बार निशब्द सी,
स्तब्ध सी, चाद्दर में मुंह ढंककर,
आंखों के किवाड़ गिरा
नींद को अपने पास बुला
मैं ढूंढती हूँ कुछ पल का सुकून

मिट्टी

मैं मिट्टी हूँ,
बिखरुं तो अस्तित्वविहीन,
संवरु तो अनन्त तक विस्तार मेरा
बीजों को खुद में सहेज,
मैं नवजीवन संचार करूँ,
कुम्हार के हाथ से पडूँ,
मैं कितने ही रूप धारण करूँ,
देहाभिमान जो तुम खुद पे करो
जात पात पे जो मर मिटो,
तो याद तुम्हें मैं दिलाती हूँ,
सिमटने मेरे आँचल में,
अंत में सभी आएंगे।
मैं मिट्टी हूँ, सब मुझमें है
मैं सबमें हूँ

Thursday, April 4, 2019

मृत्यु

जीवन में कुछ लोग हमें सहारा देते है और कुछ को हमारा सहारा होता है। कोशिश यही होनी चाहिए जो हमारे सहारे बने है उनको कभी भावनात्मक रूप से टूटने पर विवश ना किया जाए।

यह कविता उन चंद अपनों के नाम जिनको कभी अपना माना था, मगर उनके लिए मौकापरस्त होना ही जीवन चलाने का मंत्र था।

मत आना तुम दोहराने
वही गीत अपने पुराने
जब राख का मैं ढेर बनूँ
जब अंतिम विदा इस जग से लूं

तुम्हारे खोखले शब्द
करते है मुझे निशब्द
उन शब्दों से अंतिम बार
वेधने मुझे तुम आना

दुनिया क्या कहेगी,
इस प्रश्न को मिटा दिया है
मैंने अपनी कहानी से,
दुनिया का गणित बिठाने को
तुम मुझे भाज्य ना कर जाना

जिस तरह छला है हर बार
कभी उपहास कभी तिरस्कार
वही लीक कायम रखना इस बार
दो आंसू झूठे देकर मुझको,
अब ऋणि मत कर जाना

अंतिम क्षणों की पीड़ा सा अनुभव,
जीते जी भरपूर मिला है,
जब जान से प्यारों ने,
कुछ सक्षम सहारों ने,
निर्ममता से भरपूर छला है

मोहभंग हो जब जीवन से,
मृत्यु क्या दुखदायी होगी
इस वेदना का अंत करने में
एक वही सखी सहायी होगी