Thursday, September 5, 2019

ताल्लुक सुधार ले

तू खुद से खुद का ताल्लुक सुधार ले,
मंज़िलें तेरी होंगी ज़रा हौंसले से काम ले,

उदासियों से सफ़र आसान किसका हुआ,
चेहरे पे एक लकीर हँसीं की डाल लें

माना की आड़े खड़े कुछ ऊंचे पर्वत है
उनको पार करते जा कुछ कंकड़ मान के

चीथड़ों पर भी पैबंद उम्मीदों के लगा के
धूल जो पड़ी है वस्त्र पर वह झाड़ ले

जगाती है तुझे जो बेचैनियां हर रात
बना उन्हीं की शस्त्र और नई धार दे

आक्रोश को शत्रु नहीं आमात्य ले बना
साथ ले उसे, वक़्त से रार ठान ले

याद रख के वास्ता तेरा एक तुझी से है,
कर्तव्यपथ में जो अड़े, उसे उखाड़ दे

मैंने भी कुछ अपने देखे

मैंने भी कुछ अपने देखे
अपनेपन की लाज मिटाते

शब्दों के चक्रव्यूह रचते
घड़ी घड़ी मुझको भरमाते
पीठ को घायल करते जाते
लग कर गले जो है मुस्काते

मैंने भी कुछ अपने देखे
अपनेपन की लाज मिटाते

दूरियों की खाई सदा बढ़ते,
नफरतों की दीवारें चुनवाते,
रिश्तों का व्यापार बनाते,
तोहमतों के अम्बार लगाते

मैंने भी कुछ अपने देखे
अपनेपन की लाज मिटाते

आगे बढ़ने को जग में,
अपनों को सीढ़ी बनाते
मंजिल अपनी पाकर अपनी
अगले ही क्षण हैं विसराते

जिनके नाम से नाम मिला
उसी नाम पर धूल ढ़हाते
लालच की तीव्र उत्कंठा
मृतकों के सर पर भी उठाते

मैंने भी कुछ अपने देखे
अपनेपन की लाज मिटाते