Monday, July 17, 2017

ज़िन्दगी

माना की तू मुझसे थोड़ी रूठी है ज़िन्दगी
तेरी मुझसे और मेरी तुझसे कुछ अलग है बेरुखी
फिर भी मत मिल मुझे नार हठीली की तरह
कभी आके मिल मुझे सखी सजीली की तरह

मेरी चाहत को भी वो मुकाम दे
मेरे इबादत को भी अंजाम दे
मेरे दर्द को अब कुछ आराम दे
कभी तो बन जा माँ की गोद की तरह
थोडा मुझे संभाल लेथोडा मुझे संवार दे

मेरी बेपरवाहियों को कुछ नज़रअंदाज़ कर
मेरी खामोशियों को अल्फ़ाज़ों से सराबोर कर
बज जा किसी तान सुरीली की तरह
ज़्यादा तुझसे कभी कुछ माँगा नहीं
नामुमकिन तेरे लिए भी कुछ नहीं
ज़िन्दगी तेरे इम्तहानों को थोडा थाम ले
सज जा सपनों की किसी गली रंगीली की तरह

Friday, July 14, 2017

रफ़्ता रफ़्ता

रफ़्ता रफ़्ता ये शाम ढल जाएगी
जलती शमा सब बुझ जाएंगी
यह हसीं शाम ढलने से पहले
जलती शमाओं के बुझने से पहले
मैं कुछ वक़्त तेरे साथ गुज़ारना चाहती हूँ

बिखरे है हर तरफ रंग के मेले
कब तक चलूँ मैं यूँ अकेले
इन्ही रंगी मेलों के उठने  पहले
सोचा कोई साथी साथ में ले लें
दुआओं में तुझे मांगना चाहती हूँ

Wednesday, July 12, 2017

फिर कहाँ मिलेंगे



टूटे जो शाख से पत्ते वो फिर कहाँ मिलेंगे
भटकेंगे गली गली और ख़ाक में मिलेंगे
नयी बहारें नया सावन नयी हरियाली छायेगी
बीती बहारें, बीती बातें, सब भूली बिसरी हो जाएँगी
नामालूम था के चंद क़दमों में ही राहें बदलेंगे
तय तो किया था कि उम्र भर साथ चलेंगे
हंसी में समेट कर सारे दर्द तन्हा रहा करेंगे
धड़कनों में रहने के मौके फिरसे कहाँ मिलेंगे
चाहतों के परिंदों को अक्सर घरोंदे नहीँ मिलते
बेपनाह मोहब्बत को ही समाजों में हक़ नही मिलते
जब माली ही ना सींच सके अपने लगाये उपवन को
जब ममता ही ना समझ सके प्रेम के बंधन को
निष्ठुरता के सामने निश्छल सपने कहाँ सजेंगे  
गुज़रते समय में  प्रीत  के वह पल वापिस कहाँ मिलेंगे

Sunday, July 9, 2017

पुरानी डायरी



पुरानी डायरी के पन्नों पर,
कुछ जज़्बात समेटे थे मैंने,
वक़्त की धुल को हटा कर,
देखा तो वह आज भी है हरे भरे

लफ़्ज़ों में जी भर कर पिरोये थे,
कुछ लम्हें, कुछ हसरतें,
कुछ उम्मीदें और कुछ ख़्वाब,
कुछ सीधे सादे से और कुछ सरफिरे

ज़िन्दगी जीने की जल्दबाज़ी में,
ज़रूरतों का सामान जुटाने में,
कुछ बिसरे, कुछ बिछड़ते गए,
और कुछ रह गए बस अधूरे

आज फिरसे पलटा है,
उन्हीं पन्नों को एकबार,
जीने को वही सारे ख़्वाब,
आज भी जो हैं गुज़रे कल से खरे