Thursday, March 7, 2019

अभिमन्यु

कितने अभिमन्यु कितनी बार,
प्रचंड करेंगे समर अगन,
कितने वीर आहुत करेंगे
निज प्राणों की समिधा दहन

जो जीयेंगे युद्घ में,
वही शौर्य गाथा गाएंगे,
उत्तरा के निर्जल नयन में,
क्या स्वप्न फिर खिल पाएंगे

कितने शीश और चढ़ेंगे
रणचंडी को समरांगण में,
निर्मम काल व्यूह में पड़कर,
कितने शूर वीरगति पाएंगे

शत्रु के भीरु उन्माद से आहत,
क्या राष्ट्रध्वज को कफ़न बनाएंगे
संवेन्दना का आडम्बर करते हुए
हम कितने नीर बहाएंगे

कितनी बार पार्थ के शर,
मूक विवश रह जाएंगे,
कितनी बार अरि गांडीव से,
जीवन अभय को पाएंगे

अति नृशंस संहार के समक्ष,
क्या माधव भी चुपचाप रहेंगे,
रक्तरंजित शावक के शव को,
निर्मम नियति का फेर कहेंगे

निज जीवन को तृण सम कर,
खड़ी राष्ट्रसेवा में तत्त्पर,
ऐसी दृढ़निष्ट संतति का,
क्या हम तर्पण कर पाएंगे

Sunday, March 3, 2019

ज़िन्दगी लम्हों में जी जाती है

ज़िन्दगी तो लम्हों में जी जाती है,
दिन, महीने, सालों के पैमानों में उम्रें नपती है

प्रेम के सतत प्रदर्शन में नहीं,
ज़िन्दगी साथ देने से साथ चलती है,

चमकती शौहरत की बुलंदियों पर नहीं ठहरती,
थके कदम घर की देहली पर थमती है

ज़माने में प्रशंसा गीत भी लगते है नीरस
दोस्त की गाली जब मिस्री की तरह घुलती है

महंगे तौफों में चमक में नहीं,
वक़्त पर साथ देने वालों के साथ ढलती है,

ऊंचे महलों की जगमगाहट में धुंधली होती,
वाजिब साथ पा कर चल निकलती है,

ज़िन्दगी सीधे सपाट रास्तों में नहीं,
टेढ़ी मेढ़ी गलियों से गुजरती है

ज़िन्दगी बस इन्ही छोटे लम्हों में मिलती है